जामा मस्जिद की सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा बंद

नई दिल्ली, ऐतिहासिक जामा मस्जिद परिसर में सहरी और इफ्तारी में दागे जाने वाले गोलों की आवाज इस वर्ष नहीं सुनने को मिलेगी। सैकड़ों वर्ष पुरानी मुगलकालीन परंपरा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद खत्म हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले वर्ष दिल्ली में पटाखों की खरीद-बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके बाद जामा मस्जिद प्रशासन ने इस वर्ष गोला न दागने का निर्णय लिया है। गोले की आवाज से जामा मस्जिद इलाके में लोगों को सहरी और इफ्तार के समय का पता चलता था। इस वर्ष अब गोला दागने की जगह मस्जिद की मीनारों को रोशन किया जाएगा। साथ ही सायरन और अजान भी इसकी सूचक होगी।
इस बारे में जामा मस्जिद पदाधिकारी का कहना है कि गोले की जगह सायरन का इस्तेमाल होगा। गोले न दागे जाने के फैसले से लोगों में निराशा है, लेकिन हम सभी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बंधे हैं। रमजान के एक दिन पहले गोले न दागे जाने की सूचना जामा मस्जिद से लाउडस्पीकर पर एलान कर लोगों को दी गई, ताकि वह गोलों की आवाज का इंतजार न करें। जामा मस्जिद की यह परंपरा पुरानी दिल्ली में सहरी और इफ्तारी की पहचान बन गई थी। सहरी और इफ्तारी के समय दो-दो गोले दागे जाते थे और इन्हें खासतौर से बनवाया था, जिससे धमाके की आवाज भी अन्य गोलों से अलग और दूर तक जाती थी। यह परंपरा केवल मुस्लिम के लिए ही नहीं बल्कि यहां इफ्तारी के समय आने वाले पर्यटकों के लिए भी खास थी। इसे सुनने के लिए काफी संख्या में पर्यटक रमजान के दिनों में जामा मस्जिद पहुंचते थे।

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