भोपाल,आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय, भोपाल में नवीन रंग प्रयोगों के साप्ताहिक प्रदर्शन की श्रृंखला अभिनयन के अंतर्गत शुक्रवार को नाटक ‘अंधेर नगरी’ का मंचन गंधर्व सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थान, भोपाल के कलाकारों द्वारा सुरेन्द्र वानखेड़े के निर्देशन मेें किया गया.
अंधेर नगरी प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र का सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक है. नाटक के मर्मस्पर्शी संवाद एवं कलाकारों के भावपूर्ण अभिनय ने नाटक के विचार को पूरी तरह दर्शकों के समक्ष संप्रेषित किया. कथानक में अन्यायी और मूर्ख राजा स्वत: ही नष्ट हो जाता है. मंच पर महन्त के.जी. त्रिवेदी, गोवर्धन दास लक्ष्मीनाराणद ओसले, नारायणदास पार्थ आरोणकर, राजा रवि अर्जुन सोनवणे, मंत्री राहुल कुशवाह, नर्तकी किर्ती देशकर, दासी सब्जीवाली अनुराधा वाजपेयी, दासी संचिता श्रीवास्तव, सैनिक रमेश अहिरे, विवेक त्रिपाठी, अनुलेख त्रिवेदी, कोतवाल भरत सिंह, चुरनवाला संजय मेवाड़े, गड़रिया मदारी कारीगर जल्लाद प्रकाश गायकवाड़, चायवाला कसाई जल्लाद रवि द्विवेदी, जातवाला अनिल संसारे, नांरगीवाली सिमरन कौर, मछलीवाली सुनिता अहिरे, मिठाईवाला कल्लु बनिया प्रतीक गड़पाले, चुनेवाला राछ का बच्चा संजय शुक्रवारीयॉ, खरीदार प्रियंक सोनी और श्वेता रेड्डी ने भावपूर्ण अभिनय से दर्शक श्रोंताओ की खूब तालियाँ बटोरी. मंच के पीछे हार्मोनियम पर अनिल संसारे, तालवाद्य सुरेन्द्र वानखेड़े, प्रकाश संचालन दया, मंच परिकल्पना अनिल संसारे, मंच सहायक रवि अर्जुन, मंच सामग्री विवेक त्रिपाठी, लक्ष्मीनारायण और प्रकाश, वस्त्र विन्यास लक्ष्मीनारायण और विवेक, प्रॉपर्टी अनिकेत पाण्डे, राजेन्द्र और विवेक ने पूरी दूरदर्शिता के साथ अपनी भूमिका निभाई.
नाटक की कहानी
महंत अपने शिष्यों गोवर्धन दास और नारायण दास को पास के शहर में भिक्षा माँगने भेजते है. वे गोवर्धन दास को लोभ के बुरे परिणाम के प्रति सचेत करते है. शहर में सबकुछ टके के भाव में बिक रहा है. गोवर्धन दास बाजार की यह किफायती भाव देखकर आनंदित होता है, और सात पैसे में ढाई सेर मिठाई लेकर अपने गुरू के पास लौट जाता है. महंत के पास दोनों शिष्य लौटते है. नारायण दास कुछ नहीं लाता है, जबकि गोवर्धन दास ढाई सेर मिठाई लेकर आता है. महंत शहर में गुणी और अवगुणी को एक ही भाव की खबर सुनकर सचेत हो जाते है, और अपने शिष्यों को तुरंत ही शहर छोडऩे को कहते हैं. नारायण दास उनकी बात मान लेता है, जबकि गोवर्धन दास सस्ते स्वादिष्ट भोजन के लालच में वहीं रह जाने का फैसला करता. अंधेर नगरी के राजा के दरबार और न्याय का चित्रण है. शराब में डूबा राजा, फरियादी के बकरी मरने की शिकायत पर बनिया से शुरू होकर कारीगर, चूनेवाले, भिश्ती, कसाई और और गड़रिया से होते हुए कोतवाल तक जा पहुंचता है, और उसे फाँसी की सजा सुना देता है. गोवर्धन दास मिठाई खाते और प्रसन्न होते, मोटे हो गए. एक दिन गोवर्धन को चार सिपाही पकडक़र फ ाँसी देने के लिए ले जाते है. वे उसे बताते है कि बकरी मरी इसलिए न्याय की खातिर किसी को तो फ ाँसी पर जरूर चढ़ाया जाना चाहिए. जब दुबले कोतवाल के गले में फाँसी का फंदा बड़ा निकला तो राजा ने किसी मोटे को फ ाँसी देने का हुक्म दे दिया. श्मशान में गोवर्धन दास को फ ाँसी देने की तैयारी पूरी हो गयी है. तभी उसके गुरू महंत जी आकर उसके कान में कुछ मंत्र कहते है. इसके बाद गुरू और शिष्य दोनों फ ाँसी पर चढऩे की उतावले दिखाते है. राजा यह सुनकर कि इस शुभ समय में फाँसी चढऩे वाला सीधा बैकुंठ जाएगा, तो वह स्वयं को फ ाँसी पर चढ़ाने की आज्ञा देता है. इस तरह अन्यायी और मूर्ख राजा स्वत: ही नष्ट हो जाता है.