ब्राह्मण भटकते हुए कुएँ के किनारे पहुँच गया…

भोपाल,जनजातीय संग्रहालय में आयोजित अभिनयन श्रृंखला के अन्तर्गत शुक्रवार शाम को अकृतज्ञ मनुष्य नाटक का मंचन किया गया. नाटक का निर्देशन विशाल आचार्य व लेखन विष्णु शर्मा ने किया है. सघन सोसायटी फ ॉर कल्चरल एण्ड फेलवेयर-भोपाल के कलाकारों ने नाटक में अपने अभिनय का प्रदर्शन किया. संस्कृति संचालनालय द्वारा आयोजित इस नाटक में बड़ी संख्या में दर्शकों की उपस्थिति रही.
नाटक में गरीब ब्राह्मण अपना घर-परिवार छोडक़र भटकता-भटकता कुएँ के किनारे पहुँचता है. कुएँ में उसे शेर, बन्दर, साँप व एक आदमी डूबते दिखाई देते हैं. वे सभी ब्राह्मण से उनकी जान बचाने के लिए कहते हैं. ब्राह्मण एक-एक कर शेर, बन्दर साँप तथा आदमी सभी की जान बचा लेता है. जान बचने के बाद वह आदमी अकृतज्ञ हो छलपूर्वक अपराधी बताता है, किन्तु अन्य सभी उस ब्राह्मण के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं. अन्त में अकृतज्ञ मनुष्य को राजा द्वारा कारागार में बन्द कर दिया जाता है. नाटक में ब्राह्मण पात्र में-अनुज शुक्ला, साँप-शैलेन्द्र रघुवंशी, शेर-रितेश गुप्ता, बन्दर-राजेश उमरिया ने अभिनय किया. हीरालाल चटर्जी ने मंच व्यवस्थापक, प्रमोद चौरसिया ने संगीत, सुनील गोटेल ने ताल वाद्य, रचना मिश्रा ने वेशभूषा, प्रकाश परिकल्पना मनोज मिश्रा तथा रूप सज्जा-अर्चना कुमार ने की.

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