कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने पूछा क्यों मप्र को बना दिया बीमारियों का नर्क?

भोपाल,कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने अपने दूसरे सवाल में मध्यप्रदेश सरकार को बीमारियों को लेकर घेरा है। उन्होंने अपने 40 दिन 40 सवाल के दूसरे सवाल में शिवराज सरकार से पूछा है कि क्यों मध्यप्रदेश को बीमारियों का नर्क बना दिया? उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर चल रही योजनाओं और बिमारियों से लोगों की हो रही मौतों को लेकर घेरा है।
कमलनाथ ने कई बीमारियों के साथ ही कुपोषण और शिशु मृत्यु दर के आंकड़ों पर भी प्रकाश डाला है।
कमलनाथ ने ट्वीट किया है कि मामा, क्या यही है तुम्हारी घोषणा और सच्चाई का फर्क? क्यों मप्र को बना दिया बीमारियों का नर्क? कल मोदी सरकार ने बताया था कैसे हुआ मप्र की स्वास्थ्य सुविधाओं का बेड़ा गर्क, आज उन्हीं से सुनिए प्रदेश कैसे बन गया बीमारियों का नर्क
स्वास्थ्य मंत्रायल के स्रोत से पेश किए आंकड़े
इसके साथ ही उन्होंने एनएफएचएस-4, एनएचपी-2018 केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से प्राप्त आंकड़े प्रस्तुत करते हुए प्रदेश सरकार को कटघरे में ला दिया है।
– मप्र में पिछले 2 सालों में (2016-2017) एक्यूट रेस्पिरेटरी इंफेक्शन से 35 लाख 81 हजार 936 लोग पीडि़त हुए।
– पिछले 2 सालों में (2016-2017) एक्यूट डायरिया से 14 लाख 80 हजार 817 लोग पीडि़त हुए।
– पिछले 5 सालों में गंभीर संक्रामक बीमारियों से 3 लाख़ 91 हजार 18 लोग पीडि़त हुए।
– पिछले 2 सालों में टाइफॉइड से 2,29,532 लोग पीडि़त हुए ।
– मप्र में एक आदमी के ग्रामीण क्षेत्र में अस्पताल में एक बार भर्ती होने पर औसत खर्च 25961 रुपए आता है, जो बड़े राज्यों में सबसे अधिक की श्रेणी में है। बिहार जैसे राज्य में 15237 रुपए, तमिलनाडु में 16042 रुपए और उप्र में 15393 रुपए है।
– पूरे देश में मप्र में सर्वाधिक 42.8 फीसदी अर्थात् 48 लाख बच्चे कुपोषण का शिकार हैं ।
– मप्र के 68.9 फीसदी बच्चे खून की कमी के शिकार और 15 से 49 साल की 52.4 फीसदी महिलाएं खून की कमी की शिकार हैं।
– मप्र में एक साल तक के बच्चों की मृत्यु दर देश में सबसे अधिक 47 अर्थात 90 हजार बच्चे अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाते।
– बिहार, उत्तर प्रदेश के बाद तीसरा राज्य मप्र है, जहां कुल प्रजनन दर सर्वाधिक (टोटल फर्टिलिटी रेट) 3.1 है।
– मध्यप्रदेश में 89.6 फीसदी महिलाओं की पूरी गर्भावस्था के दौरान पूरी जांच नहीं होती।
– मध्यप्रदेश में 46 फीसदी बच्चों का सम्पूर्ण टीकाकरण नहीं होता।

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