(अमित व्यास द्वारा )भोपाल,शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवी कूष्मांडा नमोस्तु ते।। देवी महात्मय के प्रधानिक रहस्य में जिस महालक्ष्मी देवी से आदि देव और महादेवियों का जन्म हुआ उस महाशक्ति भगवती का एकीकृत रूप है नवदुर्गा।
मां दुर्गा के नव रूपों में चौथा रूप है कुष्मांडा देवी का दुर्गा पूजा के चौथे दिन हमें इसी देवी की उपासना करनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती के कवच में लिखा है कुत्सितऱ ऊष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत-संसार स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्याऱ सा कूष्मांडा। इसका अर्थ है वह देवी जिनके उदर में त्रिविध तापयुक्त संसार स्थित है वह कूष्माण्डा हैं। देवी कूष्माण्डा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री हैं । जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी उस समय अंधकार का साम्राय था। देवी कुष्मांडा जिनका मुखमंड सैकड़ो सूर्य की प्रभा से प्रदिप्त है उस समय प्रकट हुई उनके मुख पर बिखरी मुस्कुराहट से सृष्टि की पलकें झपकनी शुरू हो गयी और जिस प्रकार फूल में अण्ड का जन्म होता है उसी प्रकार कुसुम अर्थात फूल के समान मां की हंसी से सृष्टि में ब्रह्मण्ड का जन्म हुआ अतऱ यह देवी कूष्माण्डा के रूप में विख्यात हुई इस देवी का निवास सूर्यमण्डल के मध्य में है और यह सौर मंडल को अपने संकेत से नियंत्रित रखती हैं।
देवी कूष्मांडा अष्टभुजा से युक्त हैं अतऱ इन्हें देवी अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है। देवी अपने इन हाथों में मशऱ कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, च तथा गदा है। देवी के आठवें हाथ में बिजरौंके (कमल फूल का बीज) का माला है है, यह माला भक्तों को सभी प्रकार की ऋद्धि सिद्धि देने वाला है। देवी अपने प्रिय वाहन सिंह पर सवार हैं। जो भक्त श्रद्धा पूर्वक इस देवी की उपासना दुर्गा पूजा के चौथे दिन करता है उसके सभी प्रकार के कष्ट रोग, शोक का अंत होता है और आयु एवं यश की प्राप्ति होती है। जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं उन्हें दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को अनहत में स्थापित करने हेतु मां का अशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कूष्माण्डा सफलता प्रदान करती हैं जिससे व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है और मां का अनुग्रह प्राप्त करता है। दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा का विधान उसी प्रकार है जिस प्रकार देवी ब्रह्मचारिणी और चन्द्रघंटा की पूजा की जाती है। इस दिन भी आप सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं। इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्माण्डा की पूजा करेऱ पूजा की विधि शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र का ध्यान करें सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।। देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए। श्रीहरि की पूजा देवी देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए इस अवसर पर देवी को कुम्हर चढ़ाने का विधान है। कुम्हर को देश के अन्य भागों में लोग अलग अलग नाम से जानते हैं कहीं लोग इसे पेठा कहते हैं तो कहीं घीया कहते हैं।
(नवरात्रि विशेष )