वॉशिंगटन,एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि भारत में निजी क्षेत्र के कई डॉक्टर ट्यूबरक्लॉसिस यानी टीबी के लक्षण नहीं पहचान पाते और इस वजह से मरीजों का उचित उपचार नहीं हो पाता। इस अध्ययन में उन लोगों को शामिल किया गया जो इस बीमारी के लक्षण दिखाने का अभिनय कर सकें। विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 2017 में टीबी की वजह से 17 लाख लोगों की जान गयी थी और इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए बुधवार को संयुक्त राष्ट्र में एक वैश्विक स्वास्थ्य सम्मेलन आयोजित किया गया। लेकिन इस महामारी को खत्म करने की जंग में कमजोर कड़ी प्राथमिक उपचार करने वाले फिजिशन हैं जो मरीज को एकदम शुरुआत में देखते हैं जब उन्हें खांसी आना शुरू होती है। अध्ययन में कहा गया कि भारत के 2 शहरों मुंबई और पूर्वी पटना में तो निश्चित तौर पर यही स्थिति है। इस प्रयोग के लिए वित्तीय प्रबंध बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने किया। यह अध्ययन 2014 से 2015 के बीच करीब 10 महीनों तक मैकगिल यूनिवर्सिटी, विश्व बैंक और जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं की एक टीम ने किया। मरीज बनाकर पेश किए गए 24 लोग 1,288 निजी क्षेत्र के चिकित्सकों के पास गए। इन्होंने साधारण बलगम से लेकर ऐसा बलगम निकलने के लक्षण डॉक्टरों को बताए जिससे लगे कि वह ठीक होकर फिर से बीमार हो गए हैं। बातचीत के 65 प्रतिशत मामलों में चिकित्सकों ने जो आकलन किए वे स्वास्थ्य लाभ के भारतीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरे नहीं उतरते। इनमें दोनों तरह के डॉक्टर शामिल थे- योग्य, अयोग्य और वे जो पारंपरिक दवाओं से उपचार करते है। 2 हफ्ते से ज्यादा लगातार खांसी, खांसी के साथ बलगम आ रहा हो, कभी-कभार खून भी, भूख कम लगना, लगातार वजन कम होना, शाम या रात के वक्त बुखार आना, सर्दी में भी पसीना आना, सांस उखड़ना या सांस लेते हुए सीने में दर्द होना, इनमें से कोई भी लक्षण हो सकता है। हालांकि हम आपको बता दें कि कई बार टीबी में कोई लक्षण नहीं भी दिखता है। मालूम हो कि टीबी हवा से फैलने वाला संक्रामक रोग है जो भारत, चीन और इंडोनेशिया समेत कई अन्य देशों में जन स्वास्थ्य का एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है।