यदि हम मुसलमान को नहीं स्वीकारें तो हिंदुत्व का अर्थ नहीं

नई दिल्ली,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का कहना है कि यदि हम मुसलमान को नहीं स्वीकारें तो हिंदुत्व का अर्थ नहीं है। उन्होंने कहा हिंदुत्व एक सर्वसम्मत विचार है जो परम्परा से चला आ रहा है। ये विचार विविधता के सम्मान की वजह से चल रहा है।
दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यान माला के दूसरे दिन ‘भविष्य का भारत’ विषय पर बोलते हुए उन्होंने हिंदुत्व पर कहा कि हमें मुसलमान नहीं चाहिए उस दिन हिंदुत्व नहीं रहेगा।”
उन्होंने शिक्षाविद्द सर सय्यद अहमद ख़ान का उद्धरण देते हुए कहा कि जब उन्होंने यानी ख़ान ने बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की तो लाहौर में आर्य समाज ने उनका अभिनंदन किया। आर्य समाज ने इसलिए अभिनन्दन किया था क्योंकि सर सय्यद अहमद ख़ान मुस्लिम समुदाय के पहले छात्र थे जिन्होंने बैरिस्टर बनने की पढ़ाई की थी। भागवत बताते हैं, “उस समारोह में सर सय्यद अहमद ख़ान ने कहा कि मुझे दुःख है कि आप लोगों ने मुझे अपनों में शुमार नहीं किया।”
राजनीति पर चर्चा करते हुए भागवत का दावा था कि संघ सम्पूर्ण समाज को जोड़ना चाहता है। राजनीति में मतभेद होते हैं। जब राजनीतिक दल बनते हैं तो विरोध भी खड़ा होता है। इसीलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राजनीति से दूर है। उनका यह भी दावा था कि मौजूदा सरकार की नीतियों पर संघ का कोई दख़ल नहीं है। भागवत कहते हैं, “हमने कभी किसी स्वयंसेवक को किसी दल विशेष के लिए काम करने को नहीं कहा। कौन राज करेगा ये जनता तय करेगी। हम राजनीति से ज़्यादा राष्ट्रनीति के बारे में सोचते हैं। नीति किसी की भी हो सकती है। हमें किसी से बैर भी नहीं है और न ही किसी से अधिक दोस्ती है।”
उन्होंने कहा, ‘केंद्र में काम कर रहे काफी लोग स्वयंसेवक हैं। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति आदि स्वयंसेवक रह चुके हैं ऐसे में कई तरह की बातें होती हैं। वास्तव में ये लोग मेरी उम्र के हैं तो राजनीति में वे मुझसे सीनियर हैं। संघ कार्य का जितना मेरा अनुभव है उससे ज्यादा अनुभव उनका राजनीति का है। उनको अपनी राजनीति चलाने के लिए किसी की सलाह की आवश्यकता नहीं है। हम सलाह दे भी नहीं सकते हैं।’ भागवत ने यह जरूर कहा कि हां, उन्हें सलाह चाहिए और हम दे सकते हैं तो हम देते हैं।

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