नई दिल्ली, पुणे के भीमा कोरेगांव हिंसा केस मामले में अरबन नक्सली कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के विरुद्ध लगी याचिकाओं पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि फिलहाल कार्यकर्ताओं को हाउस अरेस्ट पर रखने का अंतरिम आदेश जारी रहेगा। इस मामले में अगली सुनवाई 19 सितंबर को होगी। मामले की सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट के दखल पर नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा, नक्सलवाद एक गंभीर समस्या है और इस तरह की याचिकाओं को सुना जाएगा तो एक खतरनाक प्रिंसिपल सेट हो जाएगा। क्या संबंधित अदालत इस तरह एक मामलों को नहीं देख सकती? हर मामले को सुप्रीम कोर्ट में क्यों ले जाया जा रहा है? सरकार की इस दलील पर प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा, हम शिथिलता के आधार पर इस मामले को सुन रहे हैं। स्वतंत्र जांच जैसे मुद्दों पर बाद में चर्चा होगी। उन्होंने कहा, हम सिर्फ यह देखना चाहते थे कि कहीं यह मामला कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर या आर्टिकल 32 से जुड़ा हुआ तो नहीं है?
इस मामले में याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उन्होंने सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, क्योंकि वे इस मामले में कोर्ट के मार्गदर्शन में जांच या सीबीआई या फिर एनआईए जांच चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सभी मामलों को एक कोर्ट (हाईकोर्ट) में ट्रांसफर कर देते हैं। याचिकाकर्ता एफआईआर रद्द करने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर सकते हैं। कोई सबूत नहीं है तो वे फ्री हो जाएंगे। तब तक हाउस अरेस्ट का अंतरिम आदेश जारी रखा जा सकता है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र के पुणे स्थित भीमा-कोरेगांव में इस साल की शुरुआत में भड़की हिंसा के मामले में पुणे पुलिस ने कई शहरों में एक साथ छापेमारी कर 5 कथित नक्सल समर्थकों को गिरफ्तार किया है। कार्यकर्ताओं की तलाश में दिल्ली, फरीदाबाद, गोवा, मुंबई, रांची और हैदराबाद में अलग-अलग जगह छापे मारे गए। गिरफ्तार किए गए लोगों में माओवादी विचारधारा के पी. वरवर राव, सुधा भारद्वाज और कार्यकर्ता अरुण फेरेरा, गौतम नवलखा और वेरनोन गोन्जाल्विस हैं। इन्हें माओवादी से सांठ-गांठ के आरोपों और भीमा कोरेगांव हिंसा को उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।