नई दिल्ली, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल कार्यालय के बीच संघर्ष चलता रहता था, लग रहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कुछ राहत मिल सकेगी। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के अधिकारों पर फैसला देते हुए कहा कि लॉ एण्ड ऑर्डर, जमीन आवंटन और दिल्ली पुलिस को छोड़कर दिल्ली सरकार द्वारा लिए गए हर फैसलों पर उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी नहीं है। हाल के दिनों में दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल दफ्तर के बीच संघर्ष तब चरम पर पहुंच गया जब केजरीवाल अपने 4 कैबिनेट मंत्रियों के साथ एलजी आवास में ही धरने पर बैठ गए। धरने की 3 वजहो मे से एक वजह राशन की डोर टू डोर डिलीवरी योजना का उपराज्यपाल कार्यालय में लंबित होना था।
– कौन से कामों में बने रौड़ा
१. घर-घर राशन की डिलिवरी-दिल्ली सरकार की एक महत्वपूर्ण योजना है जिसकी फाइल मार्च २०१८ में एलजी कार्यालय ने ये कहकर लौटा दी कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली केंद्र का विषय है, लिहाजा दिल्ली सरकार केंद्र से संपर्क करे।
२. स्वास्थ्य बीमा योजना में उपराज्यपाल ने ये कहकर लौटाई कि दिल्ली सरकार इस योजना पर अन्य राज्य और केंद्र शासित राज्यों मे चल रहे इस तरह की योजनाओं के क्रियान्वयन के तरीको पर चर्चा कर मसौदा फिर से भेजे।
३. मिड डे मील योजना में इस योजना से जुड़ी फाइल को राज्यपाल कार्यालय ने यह कहकर लौटा दिया कि एनजीओ अक्षय पात्र फाउंडेशन को इस योजना का लाइसेंस और ४ एकड़ जमीन देने का फैसला बिना कोई टेंडर जारी किए सौंपा गया।
४. मोहल्ला क्लीनिक के अतर्गत दिल्ली के स्कूलों में मोहल्ला क्लीनिक की स्थापना को लेकर छात्रों की सुरक्षा का सवाल खड़ा कर एलजी कार्यालय द्वारा लौटा दिया गया। दिल्ली सरकार के इन लंबित फैसलों के साथ स्कूलों में सीसीटीवी कैमरा, राष्ट्रीय राजधानी के ब्लैक स्पॉट पर रोशनी की व्यस्था, दिल्ली के सड़को की रीडिजाइनिंग और पिछली सरकार के २४ पॉलीक्लीनिक जिन्हे रीमॉडलिंग कर फिर से संचालित करना शामिल हैं। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आम आदमी पार्टी के पास ऐसा कोई बहाना नहीं रह जाएगा जिससे वो यह कह सके कि उपराज्यपाल उन्हे काम नहीं करने दे रहे।