तैराकी का जज्बा ऐसा की 77 साल की उम्र में भी खुद को नहीं रोक सकीं जीते 5 स्वर्णपदक

अहमदनगर,कहते हैं अगर जोश और जूनून हो तो उम्र कोई मायने नहीं रखती। यह साबित किया है उम्र के 77 वें साल में भी राष्ट्रीय तैराकी स्पर्धा में 4 व्यक्तिगत और 1 दलीय स्वर्णपदक जीतकर डॉ. माधवी साठे ने।उनकी उपलब्धि से सभी अचरज में हैं। 77 वर्षीय इस बुजुर्ग महिला ने दिखाया है कि उम्र सफलता में कोई बाधा नहीं है।
माधवी कॉलेज में पढ़ाई के वक्त एक हादसे का शिकार हो गई और उन्होंने तैरना सीख लिया। 65 साल की उम्र में उन्हें लगा कि इस साल की जलतरण क्रीड़ा प्रतियोगिता में भाग लेकर अपना प्रदर्शन दिखाना चाहिए। ऐसा लगने पर उन्होंने 2005 से स्पर्धाओं में भाग लेने की शुरूआत की। 12 वर्षों की अवधि में अब तक उन्होंने 30 पदक हासिल कर लिए हैं।
1960 में अहमदनगर के गर्ल्स होस्टल में रहकर उन्होंने आयुर्वेद महाविद्धालय में पढ़ाई की। पढ़ाई के दौरान तैराकी उनका शौक बन गया। सातारा जिले में चिकित्सा अधिकारी के रूप में काम करते हुए तैराकी रुक गई। विवाह के बाद उन्होंने घाणेकर अस्पताल में नौकरी की और बाद में खुद का स्वतंत्र चिकित्सा व्यवसाय शुरू किया।
2004 में चिपलूण नगरपालिका ने रामतीर्थ नामक तरण पुष्कर का निर्माण किया। तब डॉ. माधवी साठे के शौक ने फिर उन्हें उकसाया। इस अवधि में अहमदनगर जिले के प्रवरानगर में महाराष्ट्र राज्य वेटरंस एक्वाटिक एसोसिएशन ने सभी आयु समूहों की राज्य स्तरीय प्रतियोगिता का आयोजन किया। इस स्पर्धा में उन्हें पहला पदक मिला और तब से डॉ. साठे को अब तक राज्य व राष्ट्रीय स्पर्धाओं में कई पदक मिल चुके हैं। डॉ. साठे का कहना है कि मेरी अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भाग लेने की भी इच्छा है।

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