किसानों को दी जाने वाली बिजली सब्‍स‍िडी से भूजल स्तर में गिरावट

नई दिल्ली, देश के हर राज्य में बिजली सब्सिडी एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनती रही है। पंजाब, उत्तरप्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इसने कई बार सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई है। हालांकि, समय-समय पर पर्यावरण विशेषज्ञ अपने अध्‍ययन का हवाला देकर सरकारों को इसे लेकर चेताते रहे हैं। हाल में पंजाब में किए गए एक ऐसे ही नए अध्‍ययन से पता चला है कि भूजल में गिरावट के लिए किसानों को दी जाने वाली बिजली सब्‍स‍िडी काफी हद तक जिम्‍मेदार है।
इस अध्ययन में गिरते भूजल स्‍तर का सीधा संबंध फसल पद्धति से पाया गया है। इसके मुताबिक राज्‍य में भूमिगत जल स्‍तर पर गहराते संकट के लिए चावल की फसल सबसे अधिक जिम्‍मेदार है। चावल की खेती में सबसे अधिक पानी का उपयोग होता है। इसमें गन्‍ने के मुकाबले 45 प्रतिशत और मक्‍के की अपेक्षा 88 प्रतिशत तक अधिक भूजल की खपत होती है। अध्ययन में सामने आया है कि बिजली पर सब्‍स‍िडी मिलने के कारण किसान चावल की फसल का रकबा बढ़ाते जा रहे हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक 1980-81 में पंजाब में चावल की खेती 18 प्रतिशत क्षेत्र में ही होती थी, लेकिन राज्य सरकार द्वारा भारी सब्सिडी देने की घोषणा के बाद 2012-13 में इसमें 36 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो गई।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से सम्‍बद्ध राष्ट्रीय कृषि आर्थिकी एवं नीति अनुसंधान संस्थान, केंद्रीय समुद्री मत्स्‍य अनुसंधान संस्‍थान और नीति आयोग के अध्‍ययनकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्‍ययन हाल में करंट साइंस शोध पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। इंडिया साइंस वायर के मुताबिक अध्‍ययनकर्ताओं का कहना है कि फसल उत्‍पादन में प्रति घन मीटर खर्च होने वाले पानी के लिहाज से देखें तो अन्‍य फसलों की अपेक्षा चावल की खेती पंजाब के पारीस्थितिकी तंत्र के बिलकुल भी मुफीद नहीं है और इसीलिए राज्य के किसानों को चावल से ज्यादा अन्य फसलों को तरजीह देनी चाहिए।
अध्‍ययनकर्ताओं की टीम में शामिल डॉ. शिवेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव ने इंडिया साइंस वायर को बताया, ‘पिछले कुछ वर्षों में पंजाब की फसल पद्धति में बदलाव देखने को मिला है और चावल की खेती के साथ-साथ भूमिगत जल पर किसानों की निर्भरता तेजी से बढ़ी है। सिंचाई के लिए भूजल की उपलब्‍धता के साथ-साथ ज्यादा पैदावार, समर्थन मूल्‍य, बेहतर बाजार और खासतौर पर मुफ्त बिजली मिलने से किसान इस गैर-परंपरागत फसल की ओर ज्‍यादा आकर्षित हुए हैं.’हालांकि, राज्‍य सरकार ने भविष्य में भूजल के स्तर में गिरावट से चिंतिति होकर ही 2009 में भूमिगत जल के उपयोग के नियमन के लिए कानून भी बनाया था। लेकिन, इस पर सख्ती से अमल नहीं किया गया। इस वजह से इस नियम के बावजूद जलस्‍तर में गिरावट लगातार जारी है. हालांकि, अध्‍ययनकर्ताओं का मानना है कि अगर अभी भी सरकार इस कानून का गंभीरता से पालन करवाए तो राज्य के जलस्‍तर में वृद्धि हो सकती है।
बिजली सब्‍स‍िडी से सरकारी खजाने पर पड़ने वाले बोझ की बात करें तो पंजाब सरकार ने 1997 में किसानों के लिए बिजली सब्सिडी की योजना शुरू की थी. बताया जाता है कि इसके बाद 2016-17 में राज्‍य सरकार का ऊर्जा सब्सिडी बिल 5,600 करोड़ रुपये रहा। मौजूदा वित्‍त वर्ष में यह बढ़कर 10 हजार करोड़ रुपये हो गया है। इसमें बिजली के लिए कृषि क्षेत्र को दी जाने वाली सर्वाधिक 7,660 करोड़ रुपये की रियायत शामिल है।
अध्‍ययनकर्ताओं के अनुसार अगर पंजाब सरकार बिजली सब्सिडी बंद करती है तो भूजल के दीर्घकालिक उपयोग और राज्‍य की खस्‍ता आर्थिक हालत दोनों को दुरुस्‍त करने में मदद मिल सकती है। इन लोगों का कहना है कि इससे किसानों की आय जरूर कुछ कम हो सकती है, पर फसलों पर होने वाला उनका मुनाफा बना रहेगा। सरकार द्वारा सामुदायिक सिंचाई यंत्रों की स्‍थापना के साथ-साथ भूजल बाजार को बढ़ावा देने से भी किसान किफायती तरीके से भूमिगत जल के उपयोग के लिए प्रेरित हो सकते हैं।

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