नोटबंदी, रेत संकट और अब रेरा का फेरा

जबलपुर, नोटबंदी के बाद से मंदी की मार झेल रहे रीयल इस्टेट कारोबार की रेरा कानून (रीयल इस्टेट अथारिटी एक्ट) ने रीढ़ तोड़ दी है। अब बिल्डर न तो मनमानी कर पाएंगे और न ही एडवांस बुकिंग लेकर रकम पलटाने का खेल खेल पाएंगे। केन्द्र सरकार द्वारा एक के बाद एक हर चीज को आधार से लिंक कराए जाने को लेकर वैसे ही ब्लेक मनी वाले दहशत में हैं और अब रीयल इस्टेट में काली कमाई का निवेश भी नहीं हो पा रहा है, जिसका सीधा असर भवन निर्माताओं के कारोबार पर पड़ा है। इस समय चारों तरफ से रीयल इस्टेट कारोबार पर ग्रहण लग गया है।
मध्यप्रदेश सरकार ने रेत के उत्खनन पर पाबंदी लगा दी है। रेत के अभाव में बिल्डरों के प्रोजेक्ट बीच रास्ते में अटक गए हैं। उसके बाद जीएसटी ने फिलहाल तो नई मुसीबत खड़ी की है और सबसे बड़ी मुसीबत रेरा कानून ने खड़ी कर दी है। पहले बिल्डर अपने प्रोजेक्ट को लांच करके उसके शैशवकाल में ही एडवांस बुकिंग की रकम लेकर दूसरे प्रोजेक्ट का उदय कर उसमें यह रकम पलटा लेते थे। लेकिन रेरा कानून मार्च २०१६ से देश की संसद में पारित होने के बाद उसमें वर्णित प्रावधानों के मुताबिक बिल्डर को निर्माणाधीन प्रोजेक्ट की ७० फीसदी राशि उसी बैंक के एकाउंट में रखना अनिवार्य कर दिया है। लिहाजा, संबंधित प्रोजेक्ट का पैसा एग्रीमेंट के मुताबिक उसी प्रोजेक्ट पर लग रहा है, या नहीं, यह सुनिश्चित करना न केवल बिल्डर की जिम्मेदारी है, बल्कि बैंक और रेरा अफसरों पर भी इसकी जिम्मेदारी सुनिश्चित की गई। चूंकि रजिस्टर्ड प्रोजेक्ट की पूरी जानकारी रेरा अथारिटी के पास होगी, लिहाजा बिल्डर खरीददार को कब्जा देने के बाद भी अगले पांच साल तक निर्माण कार्य की गुणवत्ता के लिए अपनी जवाबदारी से दूर नहीं जा सकता। रेरा कानून के तहत जबलपुर के सभी बिल्डरों को अनिवार्य रूप से अपना रजिस्ट्रेशन कराने के लिए कहा गया है। इस संबंध में कलैक्टर कार्यालय, जिला पंजीयक कार्यालय और नगर निगम व टाऊन एंड कंट्री प्लानिंग जैसी सरकारी एजेंसियों द्वारा सभी आवश्यक कार्यवाही पूरी की जा रही हैं।

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